बदल चूका बॉलीवुड - भारतीय सिनेमा के 100 साल || 100 Years of Boollywood

बदल चूका बॉलीवुड - भारतीय सिनेमा के 100 साल || 100 Years of Boollywood

बदल चूका बॉलीवुड - भारतीय सिनेमा के 100 साल
बॉलीवुड के 100 साल

आज के आधुनिक युग में यह कहना उचित होगा की बॉलीवुड बदल चूका हे | अब इसमे भारतीयता की पुरानी छाप नहीं हे न वो पुराने गानों की मिठास हे | तथा कई बार तो कहानी में भी कोई ठोस आधार नहीं होता हे | भारतीय संस्कृति की प्रष्ठभूमि खो चुका बॉलीवुड 100 साल का हुआ बॉलीवुड | परिवर्तन संसार का नियम पर संस्कृति और मोलिकता को ध्यान में न रखना उचित नहीं हे | थोड़े से आर्थिक हित के लिय हम आने वाली पीडी को भ्रमित कर रहे हे | आज के युग में 10 साल का बालक भी सेक्स के बारे में जानता हे | किन्तु ब्रह्मचारिय और जीवन में संयम के बारे में सोचता तक नहीं हे | हलाकि ये यथार्त सत्य हे की इन्सान बुरी आदत जल्दी सीखता हे | इन्ही सब आदतों को आर्थिक हित के लिए फिल्म और अन्य संचार माध्यमो से भुनाया जाता हे | आज का युवा पॉप सोंग्स पर झुमत हे इनमे न संवाद होता हे न मोलिकता और न ही कोई ठोस शब्दकोष होता हे | ये गाने द्विर्थी होते हे इन गानों में नग्नता अश्लीलता परोसी जाती जो नारी की छवि को धूमिल करता हे |


जेसे :- तेरा बोम फिगर मुझे हिप्नोटाइज करता हे और किसी हसीना के हाई हिल्स सेंडल कि बात होती हे | जिस में पश्चिमी संस्कृति का विडियो होता हे, जिसमे विदेशी मॉडल कम कपड़ो में ठुमकती हे | इसी कारण हमारे देश का युवा और किशोर अवस्था का व्यकित नारी के प्रति सम्मान का भाव नहीं रखता | लेकिन बॉलीवुड के फिल्म निर्माता इस बात को स्वीकार नहीं करते | उनका कहना हे की समाज जेसा हे, जेसा चल रहा हे, हम ने वो दिखाया हे | उनका मानना हे फिल्मे समाज का आईना हे पर प्रश्न यह उठता हे | किसी एक व्यक्ति या समूह विशेष की जीवन शेली को लेकर पुरे समाज की वेसी ही कल्पना करना ठीक नहीं हे | कियोकी जेसा हम दिखाएगे वेसी समाज की धारणा बनेगी, खास कर युवा अवस्था के बच्चो में इसे समाज में विकृतिया जन्म लेगी | यदि किस खास विषय पर कोई फिल्म बना हे तो उसे पूर्ण व्यस्क लोगो के लिए सिमित करना चाहिए | आयु सीमा 18 वर्ष नहीं बल्कि 25 – 30 वर्ष होनी चाहिए सेंसर बोर्ड को अपने नियम कड़े करना चाहिए | कियोकी सेंसर बोर्ड भी ध्रतराष्ट्र बना बेठा हे |

आज न तो  ओ.पी. नय्यर, एस.डी. बर्मन, हेमंतकुमार, रवि, अंजान, खयाम, जयदेव, सावनकुमार कल्याणजी - आनंदजी, लक्ष्मीकान्त - प्यारेलाल जेसे संगीतकार | और मोहमद रफ़ी, किशोर कुमार, मुकेश कुमार, तलत महमूद, लता मंगेशकर, गीता दत्त, सुमन कल्यानपुर, जेसे गायक गायिका और हसरत जयपुरी, साहिल, लुधियानवी, मजरुर सुल्तानपुरी, शेलेन्द्र, जेसे गीतकार और लेखक और गुरुदत्त देवानंद ऋषिकेश मुखर्जी बी.आर. चोपड़ा सावन कुमार जेसे निर्मात या तो नहीं हे या फिल्म जगत में अब उनकी सक्रियता नहीं हे बदलते परिवेश के करना |

इनकी फिल्मे सामाजिक और पारिवारिक होती थी | तथा इन में हास्य के साथ शिक्षाप्रद सन्देश भी होता था | जो सामाजिक प्रष्ठभूमि पर खरी उतरती थी | पहले जब भी कोई गीत होता था तो उसमे नायक का नायिका के प्रति प्रेम प्रसंग में निवेदन होता था |

1 मेरा प्रेम पत्र पड़ कर तुम नाराज न होना के तुम मेरी जिन्दगी हो |
2 कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे तब तुम मेरे पास आना प्रिय मेरा दर खुला हे खुला ही रहेगा |
3 तुझे जीवन की डोर से बांध लिया हे तेरे जुल्मो सितम सर आखों पर |

अब सीधी बात :-

1 प्यार तेरा दिल्ली की सर्दी |
2 तू एक रात मेरे साथ गुजर तुझे सुबह तक करू में प्यार |
3 सुबह होने न दे एक दूजे को सोने न दे तू मेरा हीरो |

इस विषय को गंभीर विषय मानकर सरकार समाज और फिल्म निर्माताओ को सोचना होगा |

0 Comments: