भीष्म और परशुराम का युद्ध || भीष्म और परशुराम का युद्ध क्यों हुआ || भीष्म पितामह और परशुराम का युद्ध, महाभारत

भीष्म और परशुराम का युद्ध || भीष्म और परशुराम का युद्ध क्यों हुआ || भीष्म पितामह और परशुराम का युद्ध, महाभारत

भीष्म और परशुराम में युद्ध

द्वापर युग में बरसों से काशी राजघराने की स्त्रियां का विवाह हस्तिनापुर में किया जाता रहा है। लेकिन जब काशी नरेश अपनी तीनों पुत्रियों का विवाह स्वयंवर के माध्यम से करने का निश्चय करते हैं । और हस्तिनापुर के राजकुमार को किसी भी प्रकार का आमंत्रण नहीं देते हैं। तब भीष्म पितामह इसे हस्तिनापुर का अपमान समझकर काशी पहुंचकर स्वयंवर में आए सभी राजाओं को अपने बाहुबल से परास्त करके, अंबा अंबालिका और अंबिका का अपहरण करके उनका विवाह अपने भाई विचित्रवीर्य से और अन्य छोटे भाई से करवाते हैं । किंतु उसी समय अंबा अपने मन की बात रानी सत्यवती से कहती है, कि वह शाल्व नरेश से प्रेम करती है। और स्वयंवर में उसने भीष्म पितामह के भय के कारण अपने मन की बात राजदरबार में व्यक्त नहीं की, अंबा के इस वचन को सुन कर भीष्म पितामह सम्मान पूर्वक अंबा को शाल्व नरेश के पास भेज देते हैं । किंतु शाल्व नरेश भरे राजदरबार में स्वयंवर में भीष्म पितामह के द्वारा हुई हार के कारण बहुत आहत था, और वह अपनी प्रेमिका अंबा को यह कहकर वापस भीष्म पितामह के पास भेज देता है। कि वह दान में दी हुई वस्तु स्वीकार नहीं करता है ।


तब अंबा इसे अपना अपमान समझकर राज दरबार में भीष्म के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखती है । किंतु भीष्म पितामह आजीवन अविवाहित रहने के वचन के कारण अंबा के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं । और इस बात को अम्बा अपना घोर अपमान समझकर साध्वी का जीवन अपनाने के लिए साधु-संतों के पास पहुंचती है । उन्हीं साधुओं में उसकी मुलाकात अपने नाना से होती है, जो बाल्यावस्था में ही तपोवन चले गए थे जो कि भगवान परशुराम के मित्र और बाल सखा थे । वहीं अंबा को सुझाव देते हैं कि भीष्म पितामह को हराने का सामर्थ केवल भगवान परशुराम में है। उन्हीं के कहे अनुसार अंबा सारी घटना भगवान परशुराम को बताती है। और भीष्म पितामह से विवाह या उनको दंडित करने के लिए कहती है। भगवान परशुराम अंबा के इस कथन को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं और भीष्म पितामह को संदेश भेजते हैं। भगवान परशुराम जो कि भीष्म पितामह के गुरु थे, उनका आदेश सुनकर वे तत्काल भगवान परशुराम के पास पहुंचते हैं। और उन्हें सारा घटनाक्रम बताते हैं, तथा उन्हें अपनी प्रतिज्ञा और वचनबद्धता का भी बोध कराते हैं। किंतु भगवान परशुराम अपने क्रोध के कारण परिस्थितियों को सही ढंग से समझ नहीं पाते, और भीष्म को स्वयं से युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं। भीष्म पितामह अपने गुरु से ज्यादा तर्क नहीं करना चाहते थे। तथा उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए वे युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।

महाभारत का युद्ध जो कि 18 दिन चला था जबकि भगवान परशुराम और भीष्म के बीच यह भीषण युद्ध पूरे 24 दिन तक चला था। और इस युद्ध में तमाम दिव्यास्त्रओं तथा ब्रह्मास्त्र का भी प्रयोग किया गया था। जबकि महाभारत में किसी भी प्रकार से ब्रह्मास्त्र का प्रयोग नहीं किया गया था। भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच हुआ यह युद्ध भीषण था। जो कि बिना परिणाम के ही समाप्त हुआ, हालांकि वैचारिक और सिद्धांत रूप में इस युद्ध मैं भगवान परशुराम की हार होती है। इस युद्ध का पूर्ण वर्णन महाभारत के अंबा कांड में अध्याय 181 182 और 183 में उल्लेखित है। जैसा कि हम जानते हैं की भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच 24 दिन तक भीषण युद्ध होता है, जिसमें कई दिव्य अस्त्रों और ब्रह्मास्त्र का भी प्रयोग किया जाता है। जिससे सारी सृष्टि नष्ट होने लगती है, तथा आकाश और पाताल में भी आग लग जाती है, तथा समुद्र का जल सूखने लगता है। जैसा कि हम जानते हैं भगवान परशुराम विष्णु के अवतार थे और वे जब भीष्म के सम्मुख बिना रथ के ही युद्ध के लिए प्रस्तुत होते हैं, तब भीष्म पितामह उनसे रथ पर आने के लिए निवेदन करते हैं। तब परशुराम भीष्म को बताते हैं | की समस्त धरती उनका रथ है, पवन अश्व है, वेग सारथी है, तथा वेदमाता गायत्री, सरस्वती और पार्वती उनका कवच है। जैसा कि हम जानते हैं भीष्म पितामह गंगा के पुत्र होने के कारण ब्राह्मण और राजा शांतनु के पुत्र होने के कारण क्षत्रिय थे, तथा वे ब्रह्मावादी वसुओं के वंशज थे। ब्रह्मा विष्णु और देवताओं के गुरू को  ब्रह्मावादी वसु कहां जाता है। इसका अर्थ हुआ कि भीष्म पितामह ब्रह्मा विष्णु और देवताओं के गुरुओं के वंशज थे । इसलिए दोनों का वध कर पाना संभव नहीं था।


जब भीष्म पितामह भगवान परशुराम के बीच बिना किसी परिणाम के कई दिनों तक युद्ध लगातार चलता रहता है। तब भीष्म पितामह और भगवान परशुराम दोनों ही अपने दिव्यास्त्र और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं। तो कभी भीष्म पितामह मूर्छित हो जाते हैं, तो कभी भगवान परशुराम मूर्छित हो जाते हैं, और युद्ध किसी परिणाम तक नहीं पहुंचता है। और दोनों ही बुरी तरह घायल हो जाते हैं। तथा दोनों के बीच चल रहे भीषण युद्ध को देखकर सारे देवता और भगवान परशुराम के पूर्वज तथा भीष्म पितामह के पूर्वज आकाश में प्रकट होकर दोनों को उनके अवतार और अस्तित्व का बोध कराते हैं। भगवान परशुराम के पूर्वज उनको बताते हैं कि भीष्म पितामह भगवान विष्णु और ब्रह्मा तथा देवताओं के गुरु ब्रह्मावादी वसुओं के वंशज हैं, और इन से युद्ध करना उचित नहीं है। तथा शस्त्रों का प्रयोग और इतना क्रोध करना एक ब्राह्मण का कार्य नहीं है। और भीष्म पितामह के पूर्वज भी आकाश में प्रकट होकर भीष्म पितामह को बताते हैं, कि भगवान परशुराम नारायण के अवतार तथा तुम्हारे गुरु हैं, इन को पराजित करना संभव नहीं है। लेकिन दोनों अपने क्रोध में वशीभूत होकर युद्ध करते रहते हैं। और भगवान परशुराम के पूर्वज उनको बताते हैं कि भीष्म पितामह की मृत्यु आगे चलकर देवता इंद्र के पुत्र अर्जुन से होगी जो कि काल और समय के अनुसार निश्चित है।

 तभी भीष्म पितामह अपने शिविर में घायल अवस्था में विश्राम करते हुए सोचते हैं, कि मैं गुरु परशुराम को कैसे परास्त करूंगा। यही सोचते-सोचते उनकी नींद लग जाती है, और सपनों में उनके पूर्वज अर्थात ब्रह्मावादी वसु आते हैं। और भीष्म को प्रस्तावना अस्त्र का प्रयोग करने को कहते हैं, इस अस्त्र को पार्श्वप्रश्त्र भी कहते है। तब भीष्म पितामह स्वप्न में अपने पूर्वजों से इस अस्त्र को चलाने की विधि तथा इसके प्रभाव के बारे में पूछते हैं। तब उनके पूर्वज भीष्म पितामह को उत्तर देते हैं, कि इस अस्त्र के माध्यम से गुरु परशुराम को नींद आ जाएगी, और उनकी पराजय भी हो जाएगी। तथा तुम्हें कोई ब्रह्म हत्या का पाप भी नहीं लगेगा, तथा पूर्व जन्म में इस अस्त्र का उपयोग संसार में केवल तुम्हें ही ज्ञात था। इसलिए इस अस्त्र का आह्वान करने पर ही यह अस्त्र और इसको चलाने की विधि तुम्हें ज्ञात हो जाएगी। जब भगवान परशुराम और भीष्म पितामह दोनों ही एक दूसरे के सारे अस्त्रों को काट देते हैं। तब भीष्म पितामह पार्श्वप्रश्त्र  का आह्वान करते हैं। तभी आकाश में आकाशवाणी होती है, जोकि भीष्म पितामह को इस अस्त्र का उपयोग भगवान परशुराम पर करने से रोक देती है। आकाशवाणी में स्पष्ट उल्लेख किया जाता है की पुत्र भीष्म इस अस्त्र का उपयोग करने से तुम्हारे गुरु का अपमान होगा। इसको सुनकर भीष्म पितामह इस अस्त्र का प्रयोग रोक देते हैं। तथा भगवान परशुराम भी अपनी पराजय स्वीकार कर लेते हैं। और युद्ध में से लोट जाने का आदेश देते हैं। तब भीष्म पितामह अपने गुरु परशुराम से कहते हैं, कि मैं आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए युद्ध कर रहा था मेरा युद्ध करने का कोई उद्देश्य नहीं था।


अर्थात इस युद्ध से यह सिद्ध होता है कि दोनों समानांतर शक्तियों से युक्त थे। और दोनों को ही पराजित करना संभव नहीं था। तथा दोनों के युद्ध से सृष्टि का विनाश हो रहा था। इसलिए  पार्श्वप्रश्त्र अस्त्र की  युक्ति का प्रयोग करके इस भीषण युद्ध को टाला गया। तथा इस युद्ध में भगवान परशुराम के द्वारा भी फारसे अर्थात परशु का प्रयोग भीष्म पितामह पर नहीं किया गया। जो कि भगवान परशुराम को भगवान शिव से प्राप्त हुआ था। इसलिए उनका नाम राम से परशुराम पड़ा फरसा और सुदर्शन चक्र एक विशिष्ट दिव्यास्त्र है, जो एक युग में एक ही व्यक्ति के पास होता है। ब्रह्मास्त्र कई हो सकते हैं, दिव्यास्त्र कई हो सकते हैं। और कई व्यक्तियों के पास हो सकते हैं। किंतु फरसा और सुदर्शन चक्र दो ऐसे अस्त्र हैं, जो एक युग में एक ही व्यक्ति के अधीन रहते हैं। तथा जिनका उपयोग सामान शक्ति धारक तथा ईश्वर के अवतारों और अंशों पर नहीं किया जाता है। इस सारे घटनाक्रम और युद्ध का प्रमुख उद्देश्य था कि जिस प्रकार भगवान परशुराम ने त्रेता युग में भगवान राम के द्वारा चलाए बाण के द्वारा अपने क्रोध का त्याग किया था। उसी प्रकार द्वापर युग में भीष्म पितामह के द्वारा मिली पराजय के कारण वे अपने अस्त्रों का त्याग करके एक ब्राह्मण का जीवन व्यतीत करें।


जब इस युद्ध में भीष्म पितामह की विजय होती है। तो अंबा क्रोधित होकर भीष्म पितामह से कहती है, कि चाहै मुझे जन्म पर जन्म लेना पड़े पर तुम्हारी मृत्यु का कारण में ही बनूंगी। इस प्रकार अंबा ने सदियों तक जन्म पर जन्म लिए तब अंत में उसका जन्म राजा द्रुपद के यहां पर एक पुत्र के रूप में होता हे। जिसका आधा शरीर अंबा नदी बन जाता है। तथा आधा शरीर शिखंडी का बन जाता है। और जो आगे चलकर भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बनती है। इस पूरे घटनाक्रम से हमें यह शिक्षा मिलती है की कभी भी भीष्म पितामह ने अंबा का अपमान नहीं किया, और ना ही अंबा के प्रेम को छीनने का भीष्म पितामह का कोई उद्देश्य था। लेकिन उनके द्वारा बिना सोचे विचारे किए गए कार्य से अंबा का जीवन अचानक ही पूरी तरह प्रभावित हो जाता है। जिसमें अंबा की कोई गलती नहीं थी। इसी अपराध बोध के पश्चाताप के कारण भीष्म पितामह शिखंडी के रूप में छुपी अंबा को पहचान लेते हैं। और उसके ऋण को उतारने के लिए अर्जुन को अपनी मृत्यु का रहस्य बता देते हैं। भीष्म पितामह एक बहुत महान व्यक्ति थे किंतु उनके द्वारा ली गई प्रतिज्ञा और भावनात्मक निर्णय के कारण ना केवल उनका बल्कि पूरे हस्तिनापुर का अस्तित्व खत्म हो गया। और उनका जीवन भी काफी संघर्षपूर्ण रहा। जबकि उनके द्वारा हमेशा त्याग दूसरों के लिए किए गए, उन्होंने अपने लिए जीवन में कभी कुछ नहीं मांगा। इसलिए व्यक्ति को हमेशा सोच विचार कर कार्य करना चाहिए। उसे कोई ऐसा व्यक्तिगत निर्णय नहीं लेना चाहिए। जो उसके तथा अन्य लोगों के जीवन के लिए घातक हो।

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