एकांत और अकेलेपन मै अंतर
गीता के अनुसार आकाश और पाताल का फर्क है,अकेलापन सबसे बड़ी सजा है, वही एकांत प्राकृति का वरदान है | ये दोनो समानार्थी शब्द एक दूसरे के पूरक हैं | अकेलेपन में विचलन हैं, तो एकांत मे आराम है | अकेलेपन मे घबराहट है, तो एकांत मैं शांति हैं | जब तक हमारा मन बाहर की और असत्य से जुड़ा है हम अकेलेपन महसूस करते है | ओर जेसे ही हमारा मन आत्मीय सुख मैं डूब जाता हैं हम एकांत महसूस करते हैं | वास्तव मे ये जीवन और कुछ नही अकेलेपन से एकांत की और एक यात्रा है जो वास्तविक सुख को दर्शाती है | आत्म संतुष्टि ही एकांत का अनुभव करती है | वास्तव मे स्वयम को जानना अपने जीवन के सही उदेश्य को जानना एकांत है | एकांत मै मनुष्य अपने अंदर एक नई ऊर्जा का संचार करता है | अकेलेपन मैं मनुष्य शक्ति विहीन हो जाता है उसका मन अतीत में खोया रहता है | एकांत मै मनुष्य अपनी कमियों और खूबियों को जान कर अपने को बेहतर बना सकता है, जबकि अकेलेपन मै व्यक्ति अपनी क्षमताओं को भूल कर अतीत मै खोया रहता है, जिससे भविष्य और वर्तमान दोनो के अवसर दूर हो जाते है | एकांत से मन और दिमाग दोनो मजबूत होते है जबकि अकेलेपन से तनाव बड़ता है और मन दुर्बल होता है व्यक्ति अवसादग्रस्त हो जाता है | सच यह है की वास्तव मै एकांत और अकेलापन दोनो मनुष्य के मन की अनुभूति है, जो उसके ज्ञान और सोच से निर्मित होती है |
जब व्यक्ति खुद को जान लेता हे और अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रसास करता हें | अपनी कमियों को दूर करने तथा अपनी शक्तियों में बड़ने के लिए स्वयं का आत्म चिंतन करता हें | ऐसी स्थिति को एकांत कहते हें | और ठीक इसके विपरीत जब व्यक्ति को न अपने लक्ष्य का पता हो न अपनी शक्तियों का, तथा अपने भविष्य और वर्तमान को लेकर गहन असुरक्षा भाव होतो ऐसी स्थिति अकेलापन कहलाती हें | अकेलेपन में घुटन हे, जबकि एकांत में शांति हे, नकारात्मक विचारों से दुरी और मन की स्थिरता ही वास्तविक एकांत हे, इनके आभाव में अकेलेपन की स्थिति निर्मित हों जाती हें | यही बारीक़ सा अंतर हे अकेलेपन और एकांत में |
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