भगवान परशुराम ने नहीं किया क्षत्रियों का समूल विनाश | परशुराम ने काट दी थी अपनी ही मां की गर्दन, जानें क्या हें सच | What is the story of Parshuram?

भगवान परशुराम ने नहीं किया क्षत्रियों का समूल विनाश | परशुराम ने काट दी थी अपनी ही मां की गर्दन, जानें क्या हें सच | What is the story of Parshuram?

भगवान परशुराम और क्षत्रिय
भगवान परशुराम का जन्म सप्तऋषि में प्रथम भृगुश्रेष्ट महर्षि जमदग्नि के द्वरा पुत्रेष्टि यज्ञ के माध्यम से देवराज इंद्रा के आशीर्वाद से माँ रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीय को हुआ था जिसे हम अक्षय तृतीय के नाम से भी जानते हें | पिता भृगु जमदग्नि द्वारा सम्पूर्ण नामकरण संस्कार बाद उनका पुत्र राम पिता की आज्ञा से शिवजी की तपस्या में लींन हो गये भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनको परशु अर्थात (फरसा) प्रदान किया जिसके कारण उनका नाम राम से परशुराम पड़ा | वे विष्णु के छठे अवतार थे और बल ब्रह्मचारी थे | उनका जन्म सतयुग में हुआ था हजारो वर्ष की तपस्या के बाद वे शिवजी से परशु प्राप्त कर और युद्ध कोशल में निपूर्ण होकर श्रेष्ठ योधा बने |

साथ ही उन्होंने चारो वैद पुराणों तथा उपनिषदों का भी ज्ञान प्राप्त कर अष्टसिद्धि प्राप्त की इसलिए 
धरती उनका रथ हें गति अश्व हें पवन सारथी हें वेदमाता गायत्री और सावित्री सरस्वती उनका कवच हें | प्राम्भ में परशुराम क्रोधी नहीं थे | बल्कि उनके पिता जमदग्नि महान तपस्वी और म्रत्यु संजवनी तथा अष्टसिद्धि के ज्ञाता थे | जिसके करना उनके ह्रदय में अग्नि की देवी का वास था इसलिए वे अपने तपोबल से क्रोध में त्रुटी होने पर किसी को भी भस्म कर देते थे | एक बार हवन कार्य के चलते जब माता रेणु गंगा घाट पर जल लेने गयी थी | तभी उन्होंने गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओ से विवाह करते देखा और वे आसक्त रह गई, और कुछ देर के लिए वही रुक गई | उनको आश्रम में न पाकर उन्होंने अपने पुत्रो से माँ रेणु अर्थात अपनी पत्नी के सन्दर्भ में पूछा, चारों पुत्रो को इसका उत्तर ज्ञात नहीं था | हवन काल व्यतीत होंने से क्रोधित होकर उन्होंने अपने चारो पुत्रो को भस्म कर दिया जेसे ही इस घटना के संदर्भ में माँ रेणु को ज्ञात हुआ वे तत्काल वह पहुची और अपने पति जमदग्नि को सारा घटनाक्रम सुनाया जिससे वे और क्रोधित हो गए और कहा की तुम ने आर्य मर्यादा विरोधी आचरण किया हे तथा मानसिक व्यभिचार करने का दंड तुम्हे अवश्य मिलेगा |


भगवान परशुराम अपने पिता के अति प्रिय और आज्ञाकारी संतान थे वे सम्पूर्ण घटनाक्रम को बड़े ध्यान पूर्वक देख और समझ रहे थे | तभी उनके पिता ने कहा तुम्हरी माता देर से आई हे इसलिए उनका सर काट दो, परशुराम जानते थे की पिता उनकी परीक्षा ले रहे और इससे उनका क्रोध भी शांत हो जायेगा | परशुराम ने तत्काल अपनी माता रेणु का सर परशु से काट दिया | तभी परशुराम से प्रसन्न होकर पिता जमदग्नि ने उनसे वरदान मांगने को कहा, परशुराम ने सब को पुनः जीवित करने और उनके दवारा वध किये जाने की समस्त स्मृति नष्ट हो जाने का वरदान माँगा | तब जमदग्नि ने अपने तपोबल और म्रत्यु संजीवनी से पति रेणु और चोरो पुत्रो को पुनः जीवित कर दिया | एक दिन ऋषि जमदग्नि के पास उनके तपोबल के कारण सवर्ग से कपिला कामधेनु गाय प्रकट हुई जो देवराज इंद्र दवारा प्रदान की गई थी जोकी दूध के साथ साथ मनवांछित वस्तु और इच्छापूर्ति भी कर वर भी प्रदान करती थी |

 सतयुग में नर्मदा नदी के किनारे हैहयवंशी क्षत्रियो का राज था जो की एक चंद्रवंशी राजा थे | जिस के राजा का नाम महिष्मंत था महिष्मंत राजा ने ही नर्मदा की महिष्मती नामक नगर बसाया था | इन्ही के कुल में आगे चलकर कनक के बड़े पुत्र कीर्तिवीर्य ने महिष्मती का राज सिंघासन सम्भाला भार्गव वंशी ब्राहमण इनके राजपुरोहित हे परशुराम के पिता जमदग्नि और कीर्तिवीर्य के बीच मधुर सम्बन्ध थे | कीर्तिवीर्य के पुत्र को अर्जुन नाम ऋषि जमदग्नि ने ही दिया था | कीर्तिवीर्य का पुत्र होने के कारण कीर्तिवीर्यर्जुन कहा जाता हे कीर्तिवीर्यर्जुन भगवान दत्तत्रेय को अपनी आराधना से प्रसन्न कर हजारो हाथो का वरदान प्राप्त किया जिससे आगे चलकर इसका नाम सहस्त्रार्जुन और सहस्त्रबाहू पड़ा जिसके पराक्रम से रावण भी घबराता था | एक दिन ऋषि वशिष्ठ के श्राप के कारण सहस्त्रार्जुन की मति भ्रमित हो गयी और वह ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय लेने चला गया | तभी ऋषि जमदग्नि ने राजा के लालच के कारण कामधेनु गाय को वापस स्वर्ग चले जाने को कहा और गाय चली गई | 


इससे क्रोधित होकर सहस्त्रार्जुन ने ऋषि जमदग्नि से युद्ध किया तथा उनको गंभीर रूप से घायल कर दिया | जेसे इस बात का ज्ञान परशुराम को हुआ वो तत्काल अपनी तपस्या छोड़ कर आश्रम पहुचे और पिता ने सारा घटनाक्रम सुनाया तभी ऋषि जमदग्नि के ह्रदय से अग्नि की देवी प्रकट हुई और उन्होने कहा पुत्र में जबतक तुम्हारे शरीर में हु तुम मरोगे नहीं और यदि तुम ने मुझे त्याग दिया तो तुम म्रत्यु को प्राप्त होगे | ऋषि को अपनी म्रत्यु का कारण और समय पहले से ही ज्ञात था | और परशुराम को दिए वरदान के अनुसार वे म्रत्यु संजीवनी का ज्ञान उनकी स्मृति से मिट चूका था | इसलिए परशुराम ने पिता के कष्ट को देखते हुए अग्नि की देवी को अपने ह्रदय में स्थान दिया और उनके पिता की म्रत्यु हो गई | जिसके कारण परशुराम का प्रतिशोध और क्रोध चरम पर पहुच गया और उन्होंने पुरे वेग से सहस्त्रार्जुन की सारी बुजा और सिर काट दिया | और इस तरह उन्होंने पुरे हैहयवंश का नाश कर दिया और सारी प्रथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी | और समुद में ऊपजे भूभाग महेंद्र गिरी पर्वत पर निवास करने लगते | इधर प्रथ्वी पर ब्रह्मा के द्वरा ब्राह्मणों को समझाने पर की राज चलने के लिए राजा का होना आवश्यक हें ब्राह्मण का यह कार्य नहीं ब्राह्मण को कभी अर्थ का दास नहीं होना चाहिए | तो ब्राह्मण पुनः धरती शेष बचे हुए राजाओ को दे देते | किन्तु परशुराम पुनः जब धरती पर आते तो क्षत्रियो को राज करते हुए देखते तो पुनः उनका वध कर देते और धरती ब्राह्मणों को सोप देते | 

या घटनाक्रम पुरे 21 बार सतत चलता रहा | और परशुराम क्षत्रियों रक्त से अपने पितरों का श्रध्दा करने लगते तभी महर्षि ऋचीक प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर पाप करने से रोकते हें | और उनके पूर्वज भी कहते की पुत्र तुम्हारे इस कार्य से हमारी मुक्ति नहीं हो रही हें, ये ब्राह्मण का कार्य नहीं हें | तब परशुराम अपने अस्त्र शस्त्र और प्रतिशोध त्याग कर सप्तदिप युक्त प्रथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी | और उधर क्षत्रिय परशुराम से प्राण की रक्षा हेतु माता हिग्लाज की शरण में गए माता हिग्लाज की आज्ञा अनुसार भगवान परशुराम ने क्षत्रियो को अभयदान दिया और माता हिग्लाज के श्राप के कारण भगवान परशुराम को रात में प्रथ्वी पर आने की अनुमति नहीं हें | तथा भगवान परशुराम के पास मन से भी तीव्र चलने की गति हें | भगवान परशुराम आज भी जीवित हें और धरती के अंत तक रहेगे | 


अब कई बार प्रश्न उठता हे की जब परशुराम ने 21 धरती क्षत्रिय विहीन कर दी थी तो आज क्षत्रिय हे कहा से तो जेसा लेख में ऊपर लिखा हें, कि शेष बचे हुए क्षत्रिय जो वन और गुफाओ में छुप गए थे और जिन्होंने युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था | उनको माता हिंगलाज और महर्षि कश्यप के कारण अभय दान मिल गया था | और युद्ध तो सतयुग में ही समाप्त हो गया था तो जो बाकि युग हें उस में उन्ही के तो वंशज हें | जेसा की हम महाभारत में देखते हें और भगवान परशुराम ने कभी क्षत्रीय स्त्री के गर्भ में पल रहे शिशु, और बालक, किशोर अवस्था के क्षत्रियों, उनका भी वध नहीं किया था | ये उन्ही क्षत्रियों के वंशज हें जो हम वर्तमान समय में देखते हें |

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