तन्हाईयां - जीवन के एकांत पर एक कविता
तन्हाईयां

तन्हाईयां


कियो दोष देते हो मुझे इस तन्हा अंदाज का, ये तो हुनर है अकेले जीने का |
वजह इस नासूर की यार भी हें और दिलदार भी |
दिलदार दिल में बसने से पहले ही चले गए,
यार दिल से उतर कर चले गए |
वो दिल तोड़ कर चले गए,
तुम गुरूर तोड़ कर चले गए |
मेरी तन्हाईयो के हक़दार हे दोनों बस फर्क इतना हें,
वो जिन्दगी के सफ़र में साथ चले नहीं, तुम साथ छोड़ कर चले गए |
मेरी खामियों नाकामीयो का दिलासा ना दो मुझे |
सच तो ये हें संघर्षो मेरे स्वीकार करना मुझे नागवार था तुम्हे |
याद रखो तुम भी ये सबक़ वक्त वक़त हें, बदलता हे बदलता रहेगा |
कोशिशो से हम अपनी जिन्दगी सवार लेगे, महफ़िल भी नई सजा लेगे |
महफ़िल में तो हम अपनी फिर भी तुम को बिठा लेगे,
लेकिन पलको पर बिठाना मुश्किल होगा मेरे लिए |

0 Comments: