तेरे इश्क की क्या बंदगी करू क्या तेरे हुस्न का दीदार करू |
क्या तुझे पाने की तमन्ना करू मुझे कब तू हासिल हुआ |
मेरे लिए तो तू हमेशा शर्तो से लदा हुआ चुनोती पूर्ण लक्ष्य था |
बस एक पहेली की तरहा मेरे सामने खड़ा था जिसे में दशको से सुलझाता रहा |
तू कभी मेरे दिल का मर्म नहीं था |
और मिला भी तो मेरी बुलंदी की उचाईओ पर |
संघर्षो का सागर जो में अकेला पार कर आया  वहा कब तू मेरा हमसाया था |
हमसाया न सही तू तो मेरा साहिल भी नहीं था | 
अब समाज वक़्त और आवशकताओ की परिधि में गठबंधन हो भी जाये तो |
मन का बंधन नहीं होगा मिलन हो भी जाये तो आत्ममिलन नहीं होगा |
तू मेरा जीवनसाथी हो सकता हे पर मनमीत नहीं |
तू मेरी रीत हो सकता हे पर प्रीत नहीं |
तेरी भावनाओ का सम्मान करता हु पर तेरे ख्वाबो को अपनी पलकों पर नहीं सजा सकता | 
में तुझ संग घर बसा सकता हु पर तुझे दिल में नहीं बसा सकता |
तू सुंदरी हो सकती हे किन्तु सवप्नसुंदरी नहीं | 
तेरा सम्मान मेरी नजरो में हे तू मेरा आत्मसम्मान भी हे पर तू मेरा गुमान नहीं | 
तू मेरा स्वाभिमान हे किन्तु अभिमान नहीं | 
ये शिकायते मेरी तुझ से नहीं वक़्त से हे जिसने मेरी चाहते बदल दी | 

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